Aaj ka Panchang 28 September 2024: 28 सितम्बर यानी आज है इंदिरा एकादशी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त, अशुभ समय, राहुकाल और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

28 सितम्बर यानी आज है इंदिरा एकादशी

हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन इंदिरा एकादशी मनाई जाती है। इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितम्बर दिन शनिवार यानी आज रखा जाएगा. इस दिन विष्णु जी की पूजा करने से व्यक्ति के जन्मों के पाप धुल जाते हैं. इंदिरा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम में निवास मिलता है. इसके साथ ही साथ उनके पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है. मान्यता है कि इंदिरा एकादशी पर तुलसी माता की पूजा करने से परिवार में धन, सुख-समृद्धि आती है, इस दिन मां तुलसी को सुहाग सामग्री अर्पित कर सकते हैं, कहा जाता है कि इससे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.

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28 सितंबर 2024 दिन शनिवार यानी आज पितृ पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत किया जाएगा है. हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी का व्रत किया जाता है। इंदिरा एकादशी व्रत करने वाले हर व्यक्ति को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है. आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ही इंदिरा एकदाशी  के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के जीवन की सभी पाप कट जाते हैं और सुखों की प्राप्ति होती है। इंदिरा एकादशी के दिन 11 पान के पत्तों पर रोली से ‘श्री’ लिखकर भगवान विष्णु को अर्पित करने से नौकरी में प्रमोशन और बिजनेस में नए अवसर मिलते हैं, आपकी आय में भी वृध्दि होने लगती है. चलिए जानते हैं कैसे करते हैं? इंदिरा एकादशी का व्रत पूजा विधि, मुहूर्त और महिमा।

हर माह में एकादशी व्रत एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल पक्ष में पड़ता है. हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। भाद्रपद शुक्ल एकादशी का नाम परिवर्तिनी है। उसके सुनने मात्र से हजारों अश्वमेध यज्ञ कराने के बराबर फल मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. साथ ही सभी शुभ फल की प्राप्ति होती है, सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त 

हिंदू पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 27 सितंबर 2024 को दोपहर 01 बजकर 20 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो 28 सितंबर 2024 को दोपहर 02 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी।

ब्रह्म मुहूर्त– सुबह 04.35 – सुबह 05.23

अभिजित मुहूर्त-सुबह 11.50 – दोपहर 12.39

गोधूलि मुहूर्त-शाम 06.31 – रात 06.54

विजय मुहूर्त– दोपहर 02.17 – दोपहर 03.06

अमृत काल मुहूर्त– प्रात: 01.53 – प्रात: 3.38, 29 सितंबर

निशिता काल मुहूर्त– रात 10.48- प्रात: 12.36, 29 सितंबर

इंदिरा एकादशी की पूजा के दौरान इन मंत्रों करना चाहिए जाप

इंदिरा एकादशी की पूजा के दौरान  कृष्ण महामंत्र का जाप करें. “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करते हुए दिन बिताएं। शनिवार के दिन पड़ रही इंदिरा एकादशी के दिन शनिदेव की पूजा जरूर करें। पूजा के दौरान शनिदेव का सरसों के तेल से अभिषेक करें। इसके बाद शनिदेव को नीले फूल, काले तिल, काली उड़द की दाल अर्पित करें। अब शनि मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नम: का जाप करें।

इंदिरा एकादशी पूजा विधि एवं व्रत कैसे करना चाहिए ?

विष्णु जी को दूध, दही, घी, मिश्री और शहद मिलाकर बनाए गए पंचामृत से अभिषेक करें। इसके बाद फूल, माला, पीला चंदन, अक्षत आदि लगाने के बाद तुलसी दल के साथ भोग लगाएं। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर विष्णु, चालीसा, आरती , व्रत कथा का पाठ करके अंत में आरती कर लें।

इंदिरा एकादशी व्रत के नियम यहां जानें

एकादशी व्रत से पहले दशमी तिथि की शाम को कुछ भी ऐसा न खाएं, जिससे आपका व्रत भंग हो जाए। दशमी, द्वादशी और एकादशी तीन दिन संयम में रहें। तीनों दिन कांसे के बर्तन में कुछ भी नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा दशमी के दिन चने की दाल, मसूर की दाल, साग और किसी दूसरे के घर कुछ भी नहीं खाना चाहिए

एकादशी व्रत में क्या फलाहार करना चाहिए?।

अगर आप एकादशी व्रत रख रहे हैं, तो व्रत के दौरान आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता आदि चीजें एकादशी फलाहार में ग्रहण करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन फलाहार में कुट्टू का आटा और साबूदाना का सेवन भी कर सकते हैं। फलाहार वाली चीजों का पहले विष्णु जी को भोग लगाएं उसमें तुलसी दल जरूर रखें। इसके बाद ही फलाहार ग्रहण करना चाहिए।

एकादशी की व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अ‍धोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।

प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।

सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।

मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में ‍कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।

इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा।

हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, ‍पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।

रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।

नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया।

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