उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस गुरुवार, 07 नवंबर को छठ पूजा के अवसर पर स्थानीय अवकाश रहेगा। सभी स्कूल, कॉलेज और सरकारी दफ्तर बंद रहेंगे। जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार ने इस संदर्भ में बुधवार को एक आदेश जारी किया।आदेश के मुताबिक, जिलाधिकारी ने छठ पूजा के मद्देनजर 07 नवंबर को स्थानीय अवकाश घोषित किया है। हालांकि, जिन विभागों में पांच दिवसीय कार्य सप्ताह लागू है, वहां यह आदेश लागू नहीं होगा, और वे कार्यालय खुले रहेंगे।
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छठ पूजा का पर्व इस साल बिहार, झारखंड समेत देश के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर कुछ राज्यों में पहले ही छुट्टियों की घोषणा की जा चुकी थी, और अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी इस पर्व को देखते हुए छुट्टी का ऐलान कर दिया गया है। राजधानी में गुरुवार को सभी निजी संस्थान, सरकार दफ्तर बंद रहेंगे. इसको लेकर आदेश जारी कर दिया गया है.
आदेश में कहा गया है कि 7 नवंबर को छठ के उपलक्ष्य में सरकारी और प्राइवेट दफ्तर बंद रहेंगे. यह आदेश डीएम सूर्यपाल गंगवार की तरफ से दिया गया है.
क्यों और कैसे मनाते हैं छठ पूजा
छठ पर्व का संबंध शास्त्रों और पुरानी मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। खासकर कार्तिक माह में सूर्यदेव की विशेष उपासना की जाती है, क्योंकि इस समय सूर्य अपनी नीच राशि (तुला) में होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस अवधि में सूर्य की पूजा करने से स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से मुक्ति मिलती है और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इसके अलावा, छठ पूजा के दिन विशेष रूप से षष्ठी तिथि का महत्व होता है, जो संतान की आयु और स्वास्थ्य से जुड़ी मानी जाती है। इस दिन सूर्यदेव और षष्ठी माता की पूजा करने से संतान प्राप्ति और उसकी लंबी उम्र की कामना की जाती है। मान्यता है कि सूर्य देवता और षष्ठी माता की पूजा से संतान सुख और उसके जीवन की रक्षा होती है, यही कारण है कि इस पर्व को संतान सुख की प्राप्ति और उनकी आयु रक्षा के रूप में मनाया जाता है।
इस प्रकार, छठ पूजा न केवल सूर्य देव की आराधना का पर्व है, बल्कि यह संतान सुख और परिवार के कल्याण की कामना का भी पर्व है। छठ महापर्व की शुरुआत नहाए-खाए के दिन से होती है, जो इस पर्व का पहला और महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन व्रति (व्रत करने वाले) अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए विशेष विधि का पालन करते हैं।
जानिए कैसे की जाती है नहाए-खाए की विधि?
छठ महापर्व के पहले दिन नहाए-खाए की विधि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन व्रति अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का पालन करते हैं। सबसे पहले, व्रति सुबह-सुबह किसी पवित्र नदी, तालाब या घर में स्नान करते हैं, और पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाने का विशेष ध्यान रखते हैं। गंगाजल को पवित्र और कल्याणकारी माना जाता है, जो शरीर और आत्मा की शुद्धि में सहायक होता है।
स्नान के बाद, व्रति घर की सफाई करते हैं, विशेष रूप से रसोई की सफाई पर ध्यान दिया जाता है। इसके बाद व्रति पूरे मन और आत्मा से छठ पूजा के नियमों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
नहाए-खाए के दिन छठ महापर्व की तैयारी में व्रति खास ध्यान रखते हैं, खासकर अपने भोजन के चयन पर। इस दिन व्रती सादा और सात्विक भोजन करते हैं, जो पूरी तरह से शुद्ध और सरल होता है। आमतौर पर इस दिन चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। यह भोजन ताजगी और शुद्धता का प्रतीक होता है, जिससे शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है।इस भोजन में लहसुन, प्याज, या किसी भी प्रकार के मसालों का उपयोग नहीं किया जाता है.
खास बात यह है कि यह भोजन मिट्टी या कांसे के बर्तनों में पकाया जाता है. इसके अलावा, पारंपरिक रूप से इस भोजन को लकड़ी या गोबर के उपलों (कंडे) पर पकाया जाता है, जो पुराने समय की परंपरा को दर्शाता है और इसके साथ जुड़ी शुद्धता की भावना को बनाए रखता है। व्रती इसे शुद्धता के साथ ग्रहण करते हैं और उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन करते हैं.
दूसरे दिन खरना
छठ महापर्व के दूसरे दिन को “लोहंडा-खरना” कहा जाता है, जो व्रति के लिए एक अहम दिन होता है। इस दिन व्रति उपवास रखते हैं और शाम के समय विशेष रूप से खीर का सेवन करते हैं।
लोहंडा-खरना का दिन मुख्य रूप से उपवास और संयम का प्रतीक होता है। इस दिन व्रति दिनभर निर्जल उपवास रखते हैं, यानी पूरे दिन पानी भी नहीं पीते। शाम को, सूर्यास्त के समय, वे खीर का सेवन करते हैं, जो खासतौर पर गन्ने के रस से बनाई जाती है। यह खीर बहुत ही साधारण और सात्विक होती है, जिसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता।
छठ महापर्व के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है
छठ महापर्व के तीसरे दिन व्रति उपवास रखते हुए डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रति पूरे दिन उपवास रखते हैं, और शाम के समय सूर्यास्त के दौरान सूर्यदेव को दूध और जल से अर्घ्य अर्पित करते हैं। अर्घ्य देने के साथ-साथ, ठेकुवा और मौसमी फल भी सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं। ठेकुवा, जो एक विशेष प्रकार का पकवान होता है, इसे चिउड़े, गुड़ और आटा से तैयार किया जाता है। यह पकवान छठ पूजा का विशेष प्रसाद होता है.
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है.
गोरखपुर में सात-आठ को बंद रहेंगे परिषदीय विद्यालय
छठ पर्व पर जिले में सात नवंबर को पूर्व घोषित स्थानीय अवकाश में परिवर्तन किया गया है। डीएम कृष्णा करुणेश के मुताबिक सूर्योदय छठ पूजा की महत्ता के दृष्टिगत सात नवंबर को पूर्व घोषित अवकाश निरस्त कर आठ नवंबर को स्थानीय अवकाश घोषित किया गया है। उधर, परिषदीय विद्यालयों में सात-आठ नवम्बर को अवकाश रहेगा।
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