वृंदावन में दक्षिण भारतीय शैली के श्री रंगनाथ मंदिर में आयोजित ब्रह्मोत्सव के आठवें दिन भगवान रंगनाथ सोने के घोड़े पर सवार होकर दर्शन देने निकले। भगवान के शरीर पर बेशकीमती आभूषण थे, एक हाथ में चांदी का भाला, दूसरे हाथ में घोड़े की लगाम और कमर में मूठदार तलवार थी, जो भक्तों को मंत्रमुग्ध कर रही थी।नगर भ्रमण के दौरान बड़ा बगीचा में भव्य आतिशबाजी का आयोजन किया गया, जो करीब एक घंटे तक चली।
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वृंदावन स्थित दक्षिण भारतीय शैली के श्री रंगनाथ मंदिर में आयोजित ब्रह्मोत्सव के आठवें दिन सोमवार को भगवान रंगनाथ ने सोने के घोड़े पर सवार होकर भक्तों को दर्शन दिए। इस विशेष अवसर पर मंदिर परिसर में भव्य आतिशबाजी का आयोजन किया गया, जिससे आसमान में भक्ति की रोशनी छा गई। साथ ही, अद्भुत भील लीला का मंचन भी हुआ, जिसने श्रद्धालुओं को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान किया।
चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को देर शाम भगवान रंगनाथ अपनी स्वर्ण निर्मित घोड़े पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले। भगवान के एक हाथ में चांदी का भाला, दूसरे में घोड़े की लगाम, पीठ पर ढाल, कमर में मूठदार तलवार और रत्नजड़ित जूतियों से सुसज्जित रूप ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
मंदिर से निकलकर भगवान की सवारी जब बड़ा बगीचा पहुंची, तो वहां भव्य आतिशबाजी का आयोजन हुआ। आतिशबाजी में किला, हनुमान जी और राधे-राधे जैसी आकृतियां बनाई गईं, जिसे देख भक्त आनंदित हो गए।इसके बाद, मंदिर के पश्चिम द्वार पर परकाल स्वामी भील लीला का आयोजन किया गया।
भगवान रंगनाथ की सवारी जब मंदिर के पश्चिम द्वार पर पहुंची, तो वहां परकाल स्वामी भील लीला का आयोजन हुआ। इस लीला में परकाल स्वामी ने भगवान के आभूषण लूटने का प्रयास किया। पौराणिक कथा के अनुसार, परकाल स्वामी चोल देश के राजा के सेनापति थे, जिन्होंने एक वर्ष तक प्रतिदिन 1000 वैष्णव संतों को भोजन कराने का संकल्प लिया था।
धन की कमी के कारण, उन्होंने भीलों के साथ लूटपाट शुरू कर दी। भगवान ने उनकी परीक्षा लेने के लिए आभूषण धारण कर उनके सामने प्रकट होने का निर्णय लिया। जब परकाल स्वामी भगवान के आभूषण लूटने लगे, तो भगवान ने अपना दिव्य रूप दिखाया। यह देख परकाल स्वामी ने प्रभु से क्षमा मांगी और उनकी शरण में आ गए।इस लीला के दौरान बच्चों ने भील का रूप धारण किया और विचित्र शृंगार के साथ उत्सव में भाग लिया।