नवरात्रि 2025 दिन 6 की शुभकामनाएं: नवरात्रि के छठवें दिन मां आदिशक्ति के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी को समर्पित है।माना जाता है कि देवी दुर्गा की छठी शक्ति मां कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। उनकी पूजा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति की शक्ति मिलती है। नवरात्रि के दौरान देवी कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व है।
माना जाता है कि नवरात्रि में देवी कात्यायनी की पूजा से माता भक्तों को साहस और शक्ति प्रदान करती हैं। इसके अलावा, यह भी मान्यता है कि कुंवारे लड़के और लड़कियां यदि पूरी विधि विधान से मां कात्यायनी की पूजा करते हैं, तो उन्हें जीवन में सुयोग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।
चैत्र नवरात्रि इस बार 9 दिनों के बजाय 8 दिनों की है। इस बार द्वितीया और तृतीया तिथि का संयोग एक ही दिन होने के कारण नवरात्रि में एक दिन घट रहा है।नवरात्रि के हर दिन देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है।
चैत्र नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है। 03 अप्रैल के दिन दुर्गा माता के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की विधिवत पूजा करने से सुख, समृद्धि, आयु और यश की प्राप्ति होती है। मान्यता है कात्यायनी मां का व्रत रख उपासना करने पर मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं चैत्र
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और भव्य है। उनका शुभ वर्ण और स्वर्ण आभा से मण्डित रूप भक्तों को आकर्षित करता है। मां के चार भुजाओं में से दाहिने हाथ का ऊपरवाला भाग अभय मुद्रा में और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बाएं हाथ में ऊपर की ओर तलवार और निचले हाथ में कमल के पुष्प का प्रतीक है।
मां कात्यायनी का वाहन सिंह है, जो उनके अद्वितीय शक्ति और शौर्य का प्रतीक है। शीघ्र विवाह, वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।मां कात्यायनी पूरे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, और उनके आशीर्वाद से भक्तों को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है।
नवरात्रि 2025: माँ-कात्यायनी की कथा Maa Katyayani vrat katha
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए देवी भगवती की कठोर तपस्या की थी। मां भगवती उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें यह वरदान दिया कि वह उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेंगी।
इसके बाद, जब महिषासुर नामक दैत्य का अत्याचार बढ़ने लगा और सभी प्राणी परेशान हो गए, तब त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के तेज से देवी उत्पन्न हुईं, जो महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में जन्मी। इसी कारण उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
मां कात्यायनी के जन्म के बाद, ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। इसके पश्चात, दशमी तिथि पर मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया, और तब से उन्हें महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाने लगा।
कात्यायनी का मंत्र
चन्द्रहासोज्जवलकरा, शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यात, देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
मां कात्यायनी की पूजा विधि
आज मां कात्यायनी की पूजा का दिन है। भक्त सूर्योदय से पहले स्नान करके, पीले या लाल वस्त्र पहनकर मां की आराधना करनी चाहिए। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद, कलश का पूजन करनी चाहिए ।
मां कात्यायनी को वस्त्र अर्पित करने के बाद, घी का दीपक जलाएं। इसके बाद, रोली का तिलक, अक्षत, धूप और पीले फूलों से मां की पूजा करें।
इसके बाद, पान के पत्ते पर शहद और बताशे में लौंग रखकर मां को भोग अर्पित करना चाहिए । पूजा के समापन पर कपूर जलाकर मां कात्यायनी की आरती करें। इस दिन की पूजा से भक्तों को मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
मां कात्यायनी का भोग |Maa Katyayani Bhog
मां कात्यायनी को पीला रंग अत्यधिक प्रिय है, इसलिए भक्त उन्हें पीले रंग की मिठाइयाँ अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस विशेष भोग के माध्यम से मां कात्यायनी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। इसके साथ ही, मां को शहद से बने हलवे का भोग भी अर्पित किया जाता है।आप यदि सूजी का हलवा बनाकर उसमें शहद मिलाकर अर्पित करें, तो इसे भी मां कात्यायनी को अत्यधिक प्रिय माना जाता है। ऐसा करने से मां कात्यायनी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
कात्यायनी की आरती: Maa Katyayani Puja Aarti
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
॥ मां कात्यायनी की आरती सम्पूर्ण ॥
मा भगवती के नौ ( नवरात्रि ) स्वरूपों की महत्वपूर्ण तिथियां व निरूपण

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