श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाने वाला हरियाली तीज का पर्व आज देशभर में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में इस त्यौहार की धूम देखने को मिल रही है।हरियाली तीज मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और पति की लंबी उम्र व सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सौभाग्य और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए तीज का त्योहार मनाया जाता है. दरअसल, श्रावण में जब चारों तरफ हरियाली होती है, तब हरियाली तीज होती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन मां पार्वती ने शिव को अपनी कठोर तपस्या से प्राप्त किया था. वहीं, वृक्ष, नदियों तथा जल के देवता वरुण की भी उपासना इस दिन की जाती है. यह त्योहार अच्छे और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है. इस बार हरियाली तीज का पर्व 27 जुलाई, रविवार के दिन यानी आज मनाया जा रहा है.
सावन की फुहारों के बीच जब धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है, तब आती है हरियाली तीज एक ऐसा पर्व जो प्रकृति और संस्कृति का संगम है।महिलाएं हरी चूड़ियां, हरे वस्त्र और सोलह श्रृंगार कर इस दिन को खास बनाती हैं। नवविवाहिताओं के लिए यह पहला सावन बेहद खास होता है। उनके ससुराल से सिंजारा भेजा जाता है, जिसमें कपड़े, मिठाई, श्रृंगार सामग्री और मेहंदी शामिल होती है। सावन मास में शुक्ल पक्ष की तीज को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है, हरियाली तीज को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। कुछ लोग इसे छोटी तीज कहते हैं तो कहीं यह मधुश्रवा तीज या सुकृत तीज कहलाती है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में हरियाली तीज की सवारी देखने के लिए लाखों लोग उमड़ पड़ते हैं। यहां माता पार्वती की प्रतिमा को भव्य जुलूस में सवारी के रूप में निकाला जाता है, जो त्रिपोलिया गेट से शुरू होकर चौगान मैदान तक जाती है। सजी-धजी पालकी, रंगबिरंगे कपड़ों में लोग और विदेशी पर्यटकों की भीड़ इस आयोजन को और खास बना देती है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था, और हरियाली तीज के दिन ही उनका पुनर्मिलन हुआ था। यही कारण है कि यह दिन अखंड सौभाग्य और दांपत्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
हरियाली तीज पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जो न केवल सौंदर्य बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन से भी जुड़ा हुआ है। माथे की बिंदी से लेकर पैरों की पायल तक, हर आभूषण का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व होता है।हरियाली तीज ना सिर्फ श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो प्रकृति, प्रेम, पारंपरिक लोक कला और स्त्री सशक्तिकरण को भी दर्शाता है।
हरियाली तीज की पूजन विधि (Hariyali Amavasya 2025 Pujan Vidhi)
इस दिन महिलाओं को उपवास रखना चाहिए और श्रृंगार करना चाहिए. साथ ही, श्रृंगार में मेहंदी और चूड़ियों का जरूर प्रयोग करें. हरियाली तीज में हरी चूड़ियाँ, हरे वस्त्र पहनने,सोलह शृंगार करने और मेहंदी रचाने का विशेष महत्व है। इस त्यौहार पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नवविवाहित लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। लोकमान्य परंपरा के अनुसार नव विवाहिता लड़की के ससुराल से इस त्यौहार पर सिंजारा भेजा जाता है जिसमें वस्त्र,आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी, घेवर-फैनी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है।
इस दिन महिलाएं मिट्टी या बालू से मां पार्वती और शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में सुहाग की सभी सामिग्री को एकत्रित कर थाली में सजाकर माता पार्वती को चढ़ाना चाहिए।इस दिन मंदिर में घी का बड़ा सा दीपक जलाएं. पूजा के बाद सौभाग्यवती स्त्री को सुहाग की चीजें दान करें और सौभाग्यवती स्त्री से आशीर्वाद लें. इसके अलावा, काले और सफेद रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना वर्जित है और हरा-लाल रंग सबसे शुभ होता है.