हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाती है। हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी का व्रत आज, 3 सितंबर को रखा जा रहा है। शास्त्रों में इसे ‘जयन्ती एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे ‘परिवर्तिनी’ एकादशी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है, और इनमें भी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है, अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट बदलते हैं, इसी कारण इस तिथि को ‘परिवर्तिनी’ यानी परिवर्तन करने वाली एकादशी कहा जाता है।आज के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की विशेष रूप से पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा और नियम पूर्वक इस दिन व्रत रखता है तथा परिवर्तिनी एकादशी की कथा का पाठ करता है, उसे न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
परिवर्तिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि 3 सितंबर यानी आज सुबह 3 बजकर 53 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 4 सितंबर यानी कल सुबह 4 बजकर 21 मिनट पर होगा.
परिवर्तिनी एकादशी 2025 पूजा करने की विधि
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए आज का दिन अत्यंत पावन और पुण्यदायी है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर लेना चाहिए और फिर पूजा की समस्त सामग्री एकत्र कर पूजा स्थल पर श्री हरि विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है।
सबसे पहले श्री विष्णु को शुद्ध जल अर्पित करें, फिर धूप-दीप, रोली-चंदन, फूल, फल, मिष्ठान, नारियल, पंचामृत और तुलसीदल अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करें। इसके बाद परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करें। कथा के उपरांत तुलसी की माला से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का कम से कम एक माला जप करना शुभ फलदायी माना गया है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि एकादशी व्रत बिना पारण के अधूरा माना जाता है। इसलिए व्रत के अगले दिन द्वादशी को विधिविधान से पारण करें। पारण के समय भगवान श्री हरि से आशीर्वाद मांगें और अपनी मनोकामना व्यक्त करें। इसके साथ ही किसी निकटवर्ती देवालय जाकर पुजारी को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा देना भी पुण्यकारी माना गया है।
नाराज हो सकती हैं मां लक्ष्मी
ऐसा माना जाता है कि मां लक्ष्मी साफ-सफाई वाली जगह पर ही वास करती हैं। ऐसे में तुलसी के पौधे के पास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। घर और तुलसी के पास गंदगी होने के कारण घर में मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है और साधक को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
परिवर्तनी एकादशी का धार्मिक महत्व
परिवर्तिनी एकादशी को लेकर हिंदू धर्म में कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण पहली बार ब्रज में यशोदा माता और नंद बाबा के साथ भ्रमण पर निकले थे। इसी कारण भक्त इस दिन कान्हा को पालकी में विराजित कर नगर में भ्रमण कराते हैं और झूला झुलाकर उत्सव मनाते हैं। इस परंपरा को विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इस अवसर को जलझूनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण को जल के पास या मंदिर परिसर में झूला झुलाते हैं और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन योगनिद्रा में स्थित भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी यानी परिवर्तन करने वाली एकादशी कहा गया है। यह दिन आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और भक्तगण पूजा, व्रत और सेवा के माध्यम से भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं.