नेपाल में सोमवार को युवाओं का सरकार विरोधी प्रदर्शन हिंसक हो उठा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ राजधानी काठमांडू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध जताया। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार ने फेसबुक, व्हाट्सएप, एक्स समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाकर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सीधा हमला किया है।काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक हुए प्रदर्शन में 19 लोगों की मौत जबकि 347 से अधिक से अधिक लोगों के घायल होने की सूचना है। कई इलाकों में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं, जिसके चलते प्रशासन ने राजधानी के संवेदनशील हिस्सों में 24 घंटे के लिए कर्फ्यू लगा दिया है।तेज़ होती हिंसा के बीच नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने कैबिनेट बैठक के दौरान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपना इस्तीफा सौंप दिया। लेखक ने हिंसा में हुई मौतों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ने का निर्णय लिया है।
नेपाल में हालात बेहद गंभीर हो गए हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और कथित सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में युवाओं का विरोध प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है। राजधानी काठमांडू समेत सात प्रमुख शहरों में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं। इनमें से अधिकांश युवा वर्ग से हैं, जो सरकार की नीतियों और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाई गई रोक के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं।
सोमवार को काठमांडू में प्रदर्शनकारियों की भीड़ संसद भवन परिसर में घुस गई, जिसके बाद पुलिस और सुरक्षाबलों ने आंसू गैस, रबर बुलेट और बाद में लाइव फायरिंग का सहारा लिया। झड़पों में अब तक 20 लोगों की मौत की खबर है और 200 से अधिक घायल बताए जा रहे हैं।
काठमांडू, पोखरा, बुटवल, नेपालगंज, विराटनगर, इटहरी और भैरहवा समेत कई शहरों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। कुछ जिलों में धारा 144 जैसी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं। सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करते हुए प्रधानमंत्री आवास, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और उपराष्ट्रपति निवास के आसपास सुरक्षा बलों की अतिरिक्त तैनाती की गई है। कई क्षेत्रों में ‘देखते ही गोली मारने’ के आदेश जारी किए गए हैं।
गृह मंत्री रमेश लेखक ने हिंसा की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कैबिनेट बैठक में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपना इस्तीफा सौंपा, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। इस घटना ने सत्तारूढ़ गठबंधन में भी दरार पैदा कर दी है। नेपाली कांग्रेस के कुछ मंत्रियों ने कैबिनेट बैठक का बहिष्कार किया और प्रधानमंत्री ओली से सोशल मीडिया बैन हटाने की मांग की, जिसे उन्होंने स्पष्ट रूप से ठुकरा दिया।
सरकार ने हाल ही में फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को देश में रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर प्रतिबंधित कर दिया था। मंत्रालय ने इन्हें सात दिन का समय दिया था, जो 2 सितंबर को समाप्त हुआ। टिकटॉक और वाइबर जैसे कुछ प्लेटफॉर्म्स ने तय समय पर रजिस्ट्रेशन करा लिया, जबकि अन्य कंपनियों ने सरकार की सख्त शर्तों को मानने से इनकार कर दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल की अपेक्षाकृत छोटी यूज़र बेस के कारण कंपनियों को लोकल ऑफिस खोलना और डेटा शेयरिंग नियम अपनाना आर्थिक रूप से उचित नहीं लगा।
विरोध प्रदर्शनों में शामिल युवाओं का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और जनमत की अनदेखी के खिलाफ भी है। उन्होंने सरकार पर उनकी आवाज दबाने का आरोप लगाया है।
इस बीच, नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सरकार से अपील की है कि वह संयम बरते, अत्यधिक बल प्रयोग से बचे और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
भारत-नेपाल सीमा पर भी स्थिति तनावपूर्ण है। भारतीय अर्धसैनिक बल एसएसबी को अलर्ट पर रखा गया है और बॉर्डर के संवेदनशील हिस्सों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है, हालांकि फिलहाल अतिरिक्त बल तैनात नहीं किए गए हैं।