सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर समयसीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिए जाने के कुछ ही दिनों बाद, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस आदेश पर गहरी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें।
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया था कि वह राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर निर्धारित समयसीमा के भीतर निर्णय लें।इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने कभी ऐसा लोकतंत्र नहीं देखा है जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करेंगे.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर Vs राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था।
राष्ट्रपति का स्थान बहुत ऊंचा
राज्यसभा इंटर्न के ग्रुप को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने हाल ही में आए एक न्यायिक फैसले पर चिंता व्यक्त की, जिसमें राष्ट्रपति को निर्देश दिए गए थे। उन्होंने सवाल उठाया, हम किस दिशा में जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है?
उपराष्ट्रपति ने संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन को गंभीर चिंता का विषय बताया और उपस्थित युवाओं को राष्ट्रपति द्वारा ली जाने वाली शपथ की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का स्थान संविधान में सर्वोच्च है, जबकि अन्य पदों पर बैठे लोग केवल संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।
उन्होंने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें ,और वह भी किस आधार पर? उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि संविधान के तहत न्यायपालिका का कार्यक्षेत्र सीमित है, और वह केवल अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या कर सकती है, वह भी कम से कम पांच या अधिक जजों की पीठ के माध्यम से।
धनखड़ ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 142, जो सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय का अधिकार देता है, अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन चुका है, जो न्यायपालिका को 24×7 उपलब्ध है।
नई दिल्ली में एक जज के घर कैश मिलने की घटना पर उपराष्ट्रपति ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि घटना के सात दिन बाद भी जानकारी सामने न आना गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने तीन जजों की जांच कमेटी की वैधता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि कार्रवाई का अधिकार केवल संसद के पास है।
इसी बीच, तमिलनाडु के राज्यपाल की विधेयकों पर देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्यपाल के पास ‘पॉकेट वीटो’ का अधिकार नहीं है और उन्हें तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा।