उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ाई कर रहे लाखों छात्रों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है । उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें मदरसा एक्ट को संविधान के खिलाफ करार दिया गया था। मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का यह अहम फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय सही नहीं था और उसे रद्द किया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मदरसा एक्ट को संविधान के अनुरूप और वैध करार दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 22 मार्च को अपने फैसले में उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को संविधान के खिलाफ और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के के खिलाफ बताया था। अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि उत्तर प्रदेश सरकार मदरसों में पढ़ाई कर रहे छात्रों को नियमित सरकारी स्कूलों में दाखिला दे।इस फैसले के बाद, मदरसों में पढ़ाई कर रहे लगभग 17 लाख छात्रों की स्थिति पर सवाल खड़ा हो गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिससे इन छात्रों को राहत मिली।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को “असंवैधानिक” बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च के फैसले को पलट दिया।सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा, “हमने यूपी मदरसा शिक्षा अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा है।” कोर्ट ने कहा कि यह धर्मनिरपक्षेता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था देकर गलती की कि मूल ढांचे यानी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने के कारण उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को खारिज करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 22 मार्च के फैसले को खारिज करते हुए यूपी मदरसा अधिनियम को वैध करार दिया। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि यूपी मदरसा अधिनियम उस हद तक असंवैधानिक है, जिसमें यह फाजिल और कामिल के तहत उच्च शिक्षा की डिग्री प्रदान करता है, क्योंकि यह यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि यह कानून मदरसों के रोजमर्रा के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता है. “यह अधिनियम उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए है और राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है, जो छात्रों को उत्तीर्ण होने और अच्छी आजीविका अर्जित करने को सुनिश्चित करता है। केवल तथ्य यह है कि एक कानून में कुछ प्रकार के धार्मिक प्रशिक्षण शामिल हैं या निर्देश इसे असंवैधानिक नहीं बनाता है,” यह नोट किया गया।
उत्तर प्रदेश में वर्तमान में लगभग 23,500 मदरसे संचालित हैं। इनमें से 16,513 मान्यता प्राप्त हैं, जिसका अर्थ है कि वे राज्य सरकार के साथ पंजीकृत हैं। मान्यता प्राप्त मदरसों में से 560 मदरसों को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।
क्या है मामला?
उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असंवैधानिक बताने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा कानून को पूरी तरह से वैध करार दिया और हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए इसे कानूनी रूप से मान्यता दे दी है।
इससे पहले, 22 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ाई कर रहे लाखों छात्रों को राहत मिली है, और राज्य सरकार को मदरसा शिक्षा व्यवस्था को जारी रखने का अधिकार मिला है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 22 मार्च को अपने फैसले में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 को संविधान और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ करार दिया था। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि वह मदरसों में शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला दे। इस फैसले के बाद, प्रदेश के 17 लाख से अधिक मदरसा छात्रों के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ गई थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन छात्रों को राहत देते हुए 5 अप्रैल को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि मदरसों का नियमितकरण राष्ट्रीय हित में है और यह छात्रों के शैक्षिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है।
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