नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। नाग पंचमी का त्योहार हर साल सावन में मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। और दूध भी पिलाया जाता है। इस बार नाग पंचमी का त्योहार 9 अगस्त यानी आज मनाया जा रहा है. इस दिन नवनाग की पूजा की जाती है।
इस साल नाग पंचमी 9 अगस्त यानी आज है. नाग पंचमी को नागा पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. नाग पंचमी पर भगवान शिव की पूजा-आराधना के साथ उनके गले की शोभा बढ़ाने वाले नाग देवता की जाती है
जानिए नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 08 अगस्त की मध्यरात्रि के बाद यानी 09 अगस्त को सुबह 12 बजकर 37 मिनट शुरू हो जाएगी। फिर इस तिथि का समापन 10 अगस्त को सुबह 3 बजकर 14 मिनट पर होगा।उदयातिथि के अनुसार, इस बार नाग पंचमी 9 अगस्त यानी आज ही मनाई जा रही है. नाग पंचमी का पूजन मुहूर्त आज सुबह 5 बजकर 47 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 27 मिनट तक रहेगा
नाग पंचमी शुभ योग
इस बार नाग पंचमी बहुत ही खास मानी जा रही है. दरअसल, इस दिन सिद्धि योग और रवि योग का महासंयोग बन रहा है. सिद्धि योग 8 अगस्त को दोपहर में 12 बजकर 39 मिनट से लेकर 9 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 46 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा रवि योग पूरे दिन रहेगा.
नाग पंचमी पूजन विधि
नाग पंचमी के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नानादि से निवृत्त हो जाएं. – इसके बाद साफ कपड़े पहनें और भगवान के मंदिर की सफाई करें. – आप शिवालय जाकर या घर में भी भगवान शिव और नगादेवता की पूजा कर सकते हैं. – पूजा में फल, फूल, मिठाई और दूध अर्पित करें.नाग पंचमी के दिन अपने घर के दरवाज़े के दोनों तरफ गोबर से सांप बनाना चाहिए.इसके बाद ब्राह्मणों को घर बुलाकर दान दक्षिणा देनी चाहिए. नागदेवता की पूजा के बाद उनके मंत्रों का जाप और कथा सुननी चाहिए
नाग पंचमी उपाय अवश्य करना चाहिए
नागपंचमी के दिन दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करें। पूजा के बाद तिजोरी में या फिर अपने धन के स्थान में शंख रखें। श्ंख की पूजा करने से आपके घर में सुख समृद्धि बढ़ती है और मां लक्ष्मी मेहरबान होकर धन वर्षा करती हैं। नागपंचमी पर शंख का यह उपाय करने से आपके जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और आपके सुख में वृद्धि होती है।इसके अलावा नाग पंचमी के दिन अगर राहु केतु का आशीर्वाद पाने के लिए “ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:” और “ऊं स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:” मन्त्रों का का जाप करना चाहिए
नाग पंचमी पूजा मंत्र
पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए- ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥ मंत्र का अर्थः इस संसार में, आकाश, स्वर्ग, झील, कुएं, तालाब और सूर्य किरणों में निवास करने वाले सर्प, हमें आशीर्वाद दें और हम सभी आपको बारम्बार नमन करते हैं। अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
नाग पंचमी कथा
प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।
एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- ‘मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।’ यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-‘हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- ‘तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि ‘मेरी बहिन को भेज दो।’ सबने कहा कि ‘इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि ‘मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- ‘मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- ‘इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए’। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।
सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।’ राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि ‘महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो’। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।
तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता
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