हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं, लेकिन इनमें से सबसे अधिक महत्व रखती है-निर्जला एकादशी। इस एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इसे करने से पूरे साल की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह व्रत 6 जून, यानी आज रखा जा रहा है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस व्रत में जल तक का सेवन वर्जित होता है। यही कारण है कि इसे “निर्जला” एकादशी कहा जाता है।पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस कठिन तपस्या से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत दो दिन यानी 6 जून और 7 जून को किया जा रहा है। आइए जानते हैं इसका कारण और निर्जला एकादशी के पारण का समय।
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली निर्जला एकादशी का व्रत आज पूरे देश में श्रद्धा और आस्था के साथ रखा जा रहा है। हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत करने से पूरे साल की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि इसे एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।इस दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास रखने का नियम है, और इसी कारण इसे ‘निर्जला’ एकादशी कहा जाता है।
यह व्रत संयम, तपस्या और श्रद्धा का प्रतीक है।मान्यता है कि जो भक्त इस कठिन व्रत को पूरी निष्ठा के साथ करता है, उसे धर्म, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।. पहले दिन स्मार्त निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi Kitne Prakar Ki Hoti Hai) का व्रत होगा और दूसरे दिन वैष्णव निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा. चलिए जानते हैं इस व्रत की तिथि, विधि और जरूरी नियम.
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि की शुरुआत 6 जून को अर्धरात्रि में 2 बजकर 15 मिनट पर होगी और तिथि का समापन 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, 6 जून को ही निर्जला एकादशी मनाई जाएगी.
पारण 8 जून को प्रातः 5 बजकर 23 मिनट से सुबह 07 बजकर 17 मिनट तक रहने वाला है।
निर्जला एकादशी की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पवित्र वस्त्र धारण करें.
• भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें.
• पूरे दिन बिना जल और अन्न के रहें.
• हरि नाम का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें.
• इसके बाद दूध, दही, घी, चंदन, रोली, अक्षत, तिल, केला, फल और अन्य पूजन सामग्री से भगवान विष्णु का पूजन करें और उन्हें भोग अर्पित करें। पूजा आरंभ करने से पहले गाय के घी का दीपक जलाना अनिवार्य है।
जरूरतमंदों को दान करें और ब्राह्मण भोजन कराएं.
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट होते हैं. माना जाता है कि भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था, क्योंकि वो अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते थे. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.
इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. इसके अलावा, यह व्रत मानसिक और शारीरिक शुद्धि के लिए भी लाभकारी माना गया है.
निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी केवल कठिन व्रत ही नहीं, बल्कि इसके पीछे एक प्रेरणादायक पौराणिक कथा भी जुड़ी है जो महाभारत के पराक्रमी पात्र भीमसेन से संबंधित है।कहते हैं कि एक बार भीमसेन ने महर्षि वेदव्यास से कहा कि उनके सभी भाई हर महीने की दोनों एकादशियों का व्रत रखते हैं, लेकिन वे स्वयं बलिष्ठ शरीर और अत्यधिक भूख के कारण हर महीने दो बार उपवास नहीं कर पाते।तब भीमसेन ने वेदव्यास से कोई ऐसा उपाय पूछा जिससे उन्हें भी व्रत का पुण्य प्राप्त हो सके और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हो।
इस पर महर्षि वेदव्यास ने निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी जो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आती है। उन्होंने बताया कि यह व्रत साल की सभी 24 एकादशियों के बराबर पुण्य प्रदान करता है।
इस व्रत में अन्न और जल का पूरी तरह त्याग किया जाता है, इसलिए इसे ‘निर्जला एकादशी’ कहा गया। और चूंकि इसे सबसे पहले पांडव भीमसेन ने किया था, इसीलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।मान्यता है कि इस कठिन तपस्या को करने से मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।