भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने लगातार तीसरी बार रेपो रेट में कटौती करते हुए इसे 6% से घटाकर 5.5% कर दिया है। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को एमपीसी बैठक के बाद यह ऐलान किया। इस साल फरवरी और अप्रैल में भी रेपो रेट में कुल 0.50% की कटौती की जा चुकी है।अब तक 2025 में रेपो रेट में 1% की कटौती की जा चुकी है। इस फैसले से होम लोन, ऑटो लोन और अन्य बैंकिंग कर्ज सस्ते होने की उम्मीद है। गवर्नर मल्होत्रा के मुताबिक, इस कटौती से बैंकिंग सिस्टम में 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि आएगी, जिससे कर्ज वितरण में तेजी आएगी।इसके साथ ही आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है, जबकि मुद्रास्फीति का अनुमान 4 प्रतिशत से घटाकर 3.7 प्रतिशत कर दिया गया है।रेपो रेट में कटौती से रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल और कॉर्पोरेट सेक्टर को भी राहत मिलने की संभावना है.
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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने विकास को रफ्तार देने के उद्देश्य से रेपो रेट में 0.50% की कटौती का ऐलान किया है। अब यह दर 6% से घटकर 5.5% हो गई है, जो पिछले तीन वर्षों का सबसे निचला स्तर है।
गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक के बाद यह घोषणा की गई। साल 2025 में यह तीसरी बार है जब RBI ने ब्याज दरों में कटौती की है। फरवरी और अप्रैल में भी रेपो रेट में कुल 0.50% की कटौती की गई थी।
लोन की ईएमआई होगी कम
रेपो रेट में कटौती के बाद होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन की ब्याज दरों में गिरावट की उम्मीद है। हालांकि, इसका सीधा असर तभी दिखेगा जब बैंक भी अपनी दरों में कमी करेंगे। फरवरी और अप्रैल की कटौतियों के बावजूद बैंकों ने अब तक औसतन केवल 0.17% की राहत ग्राहकों को दी है।
विकास और महंगाई को लेकर संकेत
गवर्नर मल्होत्रा के अनुसार, इस कदम से बैंकिंग सिस्टम में 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी, जिससे कर्ज वितरण को बल मिलेगा। उन्होंने चालू वित्त वर्ष के लिए GDP ग्रोथ अनुमान 6.5% और महंगाई दर 3.7% पर बरकरार रखा है।
‘अकोमोडेटिव’ रुख से तटस्थ रुख में बदलाव
इस बार MPC ने मौद्रिक नीति के रुख को ‘अकोमोडेटिव’ से बदलकर ‘तटस्थ’ किया है, जिससे संकेत मिलता है कि भविष्य में दरों में कटौती की गुंजाइश सीमित हो सकती है।
क्या है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक RBI से अल्पकालिक कर्ज लेते हैं। इसके घटने का सीधा असर बैंक लोन की दरों पर पड़ता है। रेपो रेट में कमी का मतलब है, बैंक सस्ते दर पर फंड ले सकेंगे और बदले में ग्राहक को सस्ते कर्ज मिल सकते हैं।