पंचांग के अनुसार, आज यानी 25 जनवरी को षटतिला एकादशी का व्रत किया जा रहा है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना का महत्व है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार, इस दिन अन्न और धन का दान करने से जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से भक्तों के जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है। यह माना जाता है कि षटतिला एकादशी के व्रत के दौरान यदि कथा का पाठ नहीं किया जाता है, तो व्रत का पूरा फल प्राप्त नहीं होता। इसलिए, इस विशेष दिन पर व्रत कथा का पाठ करना बेहद महत्वपूर्ण है.
आज षटतिला एकादशी का व्रत मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है, और इस दिन तिल का उपयोग पुण्यदायिनी माना जाता है। माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन तिल का छह विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है—स्नान, भोजन, दान, तर्पण, हवन और उबटन।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन तिल का उपयोग करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से भगवान विष्णु इस दिन अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। तिल का उपयोग न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धता का कारण बनता है, बल्कि यह आत्मा को भी शांति प्रदान करता है।
षटतिला एकादशी का व्रत रखकर और तिल का सही तरीके से उपयोग कर व्यक्ति पुण्य लाभ अर्जित कर सकता है। यह दिन दान, सेवा और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
सालभर में हर महीने दो बार एकादशी का व्रत होता है। माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है, ताकि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे।
षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 5:26 से 6:19 बजे तक रहेगा।
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:21 से 3:03 बजे तक रहेगा।
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:52 से 6:19 बजे तक रहेगा।
- निशिता मुहूर्त: रात 12:07 से 1:00 बजे तक रहेगा।
इन मुहूर्तों में पूजा करने से विशेष लाभ और पुण्य प्राप्त होता
षटतिला एकादशी पूजा विधि इस प्रकार है
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ करके फूलों और दीपक से सजाकर एक चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें फूल, चंदन, रोली, सिंदूर आदि अर्पित करें। इसके बाद, भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और उनकी स्तुति करें।
भगवान विष्णु को भोग अर्पित करें—जैसे फल, मिठाई या अन्य पकवान। अंत में, भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
इस दिन तिल का दान विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। तिल को काले कपड़े में बांधकर दान करना चाहिए। साथ ही, व्रत रखें और सात्विक आहार ग्रहण करें।
एकादशी के दिन इस मंत्र का करें जाप
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।
पूजन सामग्री की लिस्ट
श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी, तील, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन,मिष्ठान।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक धार्मिक ब्राह्मणी ने लगातार एक महीने तक व्रत रखा। इस व्रत के कारण उसका शरीर बहुत दुर्बल हो गया। एक दिन भगवान विष्णु भिखारी के रूप में उसके घर आए और भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने भगवान को एक मिट्टी का पिंड भिक्षा के रूप में दिया। भगवान विष्णु वह पिंड लेकर अपने धाम लौट गए।कुछ समय बाद, ब्राह्मणी का निधन हो गया और वह स्वर्ग लोक को पहुंची।
स्वर्ग पहुंचने के बाद ब्राह्मणी को एक सुंदर महल तो मिला, लेकिन उसमें न तो कोई अन्न था और न ही धन। यह देखकर वह बहुत दुखी हो गई और भगवान विष्णु के पास गई। उसने भगवान से पूछा, “मैंने इतना व्रत किया, फिर भी मुझे सुख क्यों नहीं मिल रहा?
यह कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति के साथ-साथ सही कार्य और पुण्य भी महत्वपूर्ण हैं, जो जीवन में वास्तविक सुख और समृद्धि लाते हैं।
भगवान विष्णु ने ब्राह्मणी को समझाया कि उसने व्रत तो किया, लेकिन कभी किसी को दान नहीं किया, इसलिए उसे यह फल प्राप्त हुआ। भगवान ने उसे षटतिला एकादशी का व्रत करने और तिल का दान करने की सलाह दी। ब्राह्मणी ने भगवान के वचन का पालन किया, षटतिला एकादशी का व्रत रखा और तिल का दान किया। इसके बाद उसका घर धन-धान्य से भर गया और वह सुखी हो गई।
यह कथा यह संदेश देती है कि भक्ति और व्रत के साथ-साथ दान भी महत्वपूर्ण है, जो जीवन में समृद्धि और सुख लाता है।