सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। सोमवार का दिन पड़ने पर इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। यह व्रत करवाचौथ के समान पुण्य फलदायी माना जाता है। इस दिन सुहागिनें पति की लंबी आयु व खुशहाल जीवन की कामना के लिए उपवास करती हैं। पंचांग के मुताबिक इस बार भाद्रपद अमावस्या 2 सितंबर 2024 यानी आज मनाई जा रही है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर महीने के आखिरी दिन को अमावस्या के नाम से जाना जाता है, इस तरह साल में कुल 12 अमावस्या पड़ती हैं. इस दिन व्रत, पूजा-पाठ, स्नान और दान आदि का विशेष महत्व माना जाता है.
सनातन धर्म में सोमवती अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस शुभ तिथि पर गंगा में स्नान-ध्यान व भगवान शिव की विशेष पूजा का महत्त्व है। सोमवती अमावस्या पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने का भी विधान है। धार्मिक मत है कि सोमवती अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण करने से व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। उनकी कृपा से सुख, सौभाग्य और वंश में वृद्धि होती है।
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ये वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन विवाहित स्त्रियों को पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर १०८ बार धागा लपेट कर परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व है।
कहा जाता है इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के जीवन में में सुख समृद्ध बनी रहती है और सभी दुखों से मुक्त हो जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है। साथ ही विशेष चीजों का दान किया जाता है। मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से साधक के द्वारा अनजाने में किए गए सारे पाप कट जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कुछ गलतियों को करने से साधक को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सोमवती अमावस्या पूजा विधि-:
सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिनें पीपल के वृक्ष की पूजा करती हैं। सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शंकर की विधिवत पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा करने से चंद्रमा मजबूत होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान व सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। अपने गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र, गायत्री मंत्र व नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। पितरों का तर्पण करना चाहिए और मोक्ष की कामना करनी चाहिए। पूजा-पाठ के बाद किसी साधक (सत्पुरुष) को भोजन, फल, नये वस्त्र, दक्षिणा इत्यादि देनी चाहिए। गाय की सेवा करनी चाहिए। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करना भी शुभ माना जाता है
सोमवती अमावस्या का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, सोमवती अमावस्या 2 सितंबर 2024 यानी आज है. साथ इस दिन ब्रह्म मुहूर्त का समय सुबह तड़के 4 बजकर 38 मिनट से लेकर सुबह के 5 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और 03 सितंबर को सुबह 07 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। यह अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रही है, तो इस कारण इस दिन महादेव की भी पूजा की जाएगी। अमावस्या तिथि 02 सितंबर 2024 संपूर्ण दिन रात रहेगी। इस दिन शिव योग भी रहेगा।
सोमवती अमावस्या का महत्व
सोमवती अमावस्या का दिन काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए भी खास होता है। वहीं सोमवती अमावस्या के दिन जरूरतमंद लोगों को अन्न का दान करना चाहिए। साथ ही सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भोलेनाथ की पूजा अचर्ना करती हैं।
अक्षय पुण्य प्राप्ति का दिन
शास्त्रों के अनुसार, सोमवार को किए गए सभी कार्य अक्षय हो जाते हैं. सोमवती अमावस्या पर पितरों के तर्पण से उन्हें पूर्ण तृप्ति मिलती है और पुण्यफल अक्षय हो जाता है. यह दिन संतान प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है. जिनके घर में संतान नहीं हो रही है, वे इस दिन पितरों और देवताओं की पूजा करके अपनी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं.
सोमवती अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए?
- अमावस्या पर गंगा स्नान करना शुभ माना जाता है।
- इस दिन श्रद्धा अनुसार दान करना चाहिए।
- अमावस्या पर पितरों का तर्पण करना चाहिए।
- श्रीहरि की विशेष पूजा करनी चाहिए।
- प्रभु को पीले वस्त्र अर्पित करने चाहिए।
सोमवती अमावस्या के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
- तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
- बड़े बुर्जुगों और महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए।
- इस दिन शुभ और मांगलिक करना कार्य करना वर्जित है।
- पीपल और तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचना चाहिए।
सोमवती अमावस्या को करे गाय की सेवा-:
शास्त्र मतानुसार सोमवती अमावस्या के दिन गाय की सेवा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गेहूं का दलिया, चावल इत्यादि पका कर गाय को खिलाएं, हरा चारा खिलाएं, गौशालाओं में दान दें।
सोमवती अमावस्या का पालन करने से ग्रह-नक्षत्र होते हैं शांत-:
इस अमावस्या का विधिवत पालन करने से चंद्रमा के दोषों का निवारण होता है। कुंडली के चंद्र ग्रहण दोष, विष योग, पितृ दोष, केमद्रुम दोष आदि के निवारण का यह सबसे अच्छा दिन है.
सोमवती अमावस्या की कथा
एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी। उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दम्पति ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधू ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धूबी जाती की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही।
कन्या तडके ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तडके ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है जो तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता हा। कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं। तब कन्या ने साधू द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्रह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से १०८ बार भँवरी देकर १०८ बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा।
महिमा
पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः, सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भँवरी (परिक्रमा करना ) देता है, उसके सुख और सौभग्य में वृद्धि होती है। जो हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन १०८ वस्तुओं कि भँवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश कि पूजा करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
विधान
ऐसी परम्परा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी की भँवरी दी जाती है. उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने कि सामग्री इत्यादि की भँवरी दी जाती है। भँवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्रह्मण, ननद या भांजे को दिया जा सकता है।
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