उत्तराखंड ने ढाई साल की तैयारियों के बाद आज एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य में अब समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कर दी गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्य सेवक सदन में UCC के पोर्टल और नियमावली का लोकार्पण किया, साथ ही इसकी अधिसूचना भी जारी की गई। इसके साथ ही, उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां समान नागरिक संहिता लागू की गई है।
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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कर दी गई है, जिससे राज्य ने इतिहास रच दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास स्थित मुख्य सेवक सदन में UCC की नियमावली और नए पोर्टल ucc.uk.gov.in का लोकार्पण किया। इस कदम के साथ, उत्तराखंड स्वतंत्रता के बाद UCC लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है।
उत्तराखंड सरकार ने सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के उद्देश्य से समान नागरिक संहिता कानून को लागू किया है। इस विधेयक को 7 फरवरी 2024 को विधानसभा ने पारित किया और 12 मार्च 2024 को इसे राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई। इसके बाद, 14 मार्च 2024 को सरकार ने UCC लागू करने से पहले इसकी नियमावली तैयार करने का निर्णय लिया।
लगभग एक साल तक चली प्रक्रिया के बाद नियमावली तैयार की गई और कार्मिकों को इसके क्रियान्वयन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया। संहिता के प्रविधानों के तहत नागरिकों के विभिन्न विषयों का पंजीकरण कराने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल भी लॉन्च किया गया है।
उत्तराखंड राज्य में अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर, सम्पूर्ण राज्य के निवासियों के साथ-साथ राज्य से बाहर रहने वाले उत्तराखंड के लोगों पर यह नियम लागू होगा।
प्राधिकार
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में एसडीएम रजिस्ट्रार और ग्राम पंचायत विकास अधिकारी को सब रजिस्ट्रार नियुक्त किया जाएगा। वहीं, नगर पंचायत और नगर पालिकाओं में संबंधित एसडीएम रजिस्ट्रार और कार्यकारी अधिकारी को सब रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) के क्रियान्वयन के तहत, नगर निगम क्षेत्रों में नगर आयुक्त को रजिस्ट्रार और कर निरीक्षक को सब रजिस्ट्रार नियुक्त किया जाएगा। वहीं, छावनी क्षेत्रों में संबंधित CEO को रजिस्ट्रार और रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर या CEO द्वारा अधिकृत अधिकारी को सब रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी दी जाएगी। इन सभी अधिकारियों के ऊपर रजिस्ट्रार जनरल होंगे, जो सचिव स्तर के अधिकारी और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन के रूप में कार्य करेंगे।
रजिस्ट्रार जनरल के कर्तव्यों की समझ
रजिस्ट्रार जनरल के कर्तव्यों के तहत, यदि रजिस्ट्रार निर्धारित समय में कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो मामला स्वतः रजिस्ट्रार जनरल के पास भेजा जाएगा। इसके साथ ही, यदि किसी को रजिस्ट्रार या सब रजिस्ट्रार के आदेश के खिलाफ अपील करनी हो, तो वह रजिस्ट्रार जनरल के पास की जा सकेगी। रजिस्ट्रार जनरल इन अपीलों का 60 दिनों के भीतर निपटारा करेंगे और आदेश जारी करेंगे।
रजिस्ट्रार के कर्तव्य– रजिस्ट्रार के कर्तव्य के तहत, सब रजिस्ट्रार के आदेश के खिलाफ की गई अपील पर 60 दिन के भीतर फैसला लिया जाएगा। इसके अलावा, लिव इन रिलेशनशिप या विवाह कानूनों का उल्लंघन करने वालों की सूचना पुलिस को दी जाएगी।
सब रजिस्ट्रार के कर्तव्य– सब रजिस्ट्रार के कर्तव्यमें यह भी शामिल है कि वह सामान्य तौर पर 15 दिनों के भीतर और तत्काल मामलों में 3 दिनों के भीतर सभी दस्तावेजों और सूचनाओं की जांच करें, आवेदक से स्पष्टीकरण मांगते हुए निर्णय लें। यदि आवेदन समय पर नहीं दिया जाता या नियमों का उल्लंघन होता है, तो जुर्माना लगाया जाएगा और पुलिस को सूचना दी जाएगी। साथ ही, यदि विवाह की जानकारी सत्यापित नहीं होती है, तो इसकी सूचना माता-पिता या अभिभावकों को दी जाएगी।
विवाह पंजीकरण
नई संहिता के अनुसार, 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अगले छह महीने में कराना होगा, जबकि संहिता लागू होने के बाद विवाह का पंजीकरण विवाह तिथि से 60 दिन के भीतर किया जाएगा।
आवेदकों के अधिकार
अगर सब रजिस्ट्रार समय पर कार्रवाई नहीं करता, तो आवेदक ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा, अस्वीकृति आदेश के खिलाफ 30 दिन के भीतर रजिस्ट्रार या रजिस्ट्रार जनरल के पास अपील की जा सकती है, जो ऑनलाइन पोर्टल या ऐप के माध्यम से दायर हो सकती है
लिव इन रिलेशनशिप पर क्या है नियम
लिव इन रिलेशनशिप से संबंधित नियमों के मुताबिक, संहिता लागू होने से पहले स्थापित लिव इन को एक महीने के भीतर पंजीकरण कराना होगा। संहिता लागू होने के बाद इसे एक महीने के भीतर पंजीकरण करना होगा। यदि लिव इन समाप्त करना हो, तो एक साथी आवेदन कर सकता है, जिसे दूसरे साथी की पुष्टि से स्वीकार किया जाएगा। अगर महिला गर्भवती होती है, तो रजिस्ट्रार को सूचित करना अनिवार्य होगा और 30 दिन के भीतर इसे अपडेट किया जाएगा।
वसीयत आधारित उत्तराधिकार
विवाह विच्छेद के मामलों में तलाक या विवाह शून्यता के लिए आवेदन करते समय विवाह पंजीकरण और कोर्ट के अंतिम आदेश की जानकारी जरूरी होगी।