महाशिवरात्रि का यह पावन पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है इस बार यह त्यौहार 8 मार्च यानी दिन शुक्रवार आज मनाय जा रहा है। महाशिवरात्रि के दिन भक्ति और पूरी निष्ठा के साथ व्रत करने व पूजा करने से महादेव अपने भक्तों पर ज़रूर प्रसन्न होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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महाशिवरात्रि का पर्व कब मनाया जाता है
महाशिवरात्रि का यह पावन पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है इस बार यह त्यौहार 8 मार्च यानी दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव की शादी माता पार्वती के साथ हुई थी महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है और इस पर्व पर व्रत रखा जाता है और शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है महाशिवरात्रि के दिन जो भी भक्त पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ भगवान शिव की पूजा व अराधना करते हैं महादेव उन पर प्रशन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
क्यों मनाया जाता है यह पर्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव की शादी माता पार्वती के साथ हुई थी महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है और इस दिन महादेव की पूजा करने से वे अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में संपूर्ण सुख की प्राप्ति हो सकती है महाशिवरात्रि का पावन पर्व भगवान शिव व माता पार्वती की शादी के उपलक्ष में मनाया जाता है।
शिवलिंग पर अभिषेक करने का महत्व
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है इस दिन शिवलिंग का जल और दूध व अन्य सामग्री से अभिषेक किया जाता है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महादेव को तांबे के लोटे से पानी व चांदी के लोटे से दूध अर्पित करना चाहिये इस पर्व पर शिवलिंग का अभिषेक दूध, दही ,जल, बेलपत्र, शहद, घी, धतूरे के पत्ते ,फल,फूल और मिष्ठान व अन्य सामग्री के साथ करना चाहिए, इस दिन विधिवत पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं भगवान शिव को परंपरा के तौर पर ठंडक देने वाली चीजें ही अर्पित की जाती हैं जैसे-जल दूध दही और घी शिवलिंग पर जल चढ़ा कर अभिषेक किया जाता है भगवान शिव का एक नाम रूद्र भी है, इसलिए हम जलाभिषेक को रुद्राभिषेक भी कहते हैं।

प्राचीन समय में समुद्र मंथन से निकलने वाले चौदह रत्नों निकले, राक्षस अमृत कलश को पाना चाहते थे और अमर होना चाहते थे लेकिन इन सभी रत्नों ( कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, एरावत हाथी, उच्चश्रेवा घोडा, महालक्ष्मी, धनवंतरी, अमृत कलश……..14 रत्न ) से पहले हलाहल नाम का विष निकला था इस विष की वजह सारी सृष्टि के जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया इसलिए भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और प्रभू का कंठ नीला पड़ गया और इस वजह से महादेव का नाम नीलकंठ पड़ गया, इस विष की वजह से महादेव के शरीर में तपन होने लगी और इस तपन को मिटाने के लिए महादेव को ठंडक वाली चीजें अर्पित की जाती हैं और इसके बाद ही भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
शिवलिंग का अभिषेक करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिये आइये जानें
भगवान शिव को जल अर्पित सोना, चांदी, पीतल व तांबे के लोटे से करना चाहिए अगर तांबे का लोटा न हो तो मिट्टी के कलश से जल और दूध चड़ाना चाहिये सिलवर के लोटे से जल नही चड़ाना चाहिये क्योंकि सिलवर का लोटा पूजा के लिए अशुभ माना जाता है और शिवलिंग पर जल व दूध ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए पतली धार के साथ अर्पित करना चाहिये
जानिये कैसे करते हैं भगवान शिव की पूजा
1– शिवलिंग पर जल अर्पित करने से पहले सर्वप्रथम गणेश भगवान की पूजा की जाती और उन्हें जल अर्पित किया जाता है
2- ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को जल ,दूध, दही व शहद अर्पित करना चाहिये
3- इन सभी के साथ-साथ शिवलिंग पर बेलपत्र धतूरे के पत्ते व फल फूल और मिष्ठान चड़ाना चाहिये
4- धूप -दीप के साथ भगवान शिव की आरती करें और प्रभु के नामों का जप करें
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