Aja Ekadashi 2024: 29 अगस्त यानी आज है अजा एकादशी, यहां जानें व्रत का पारण, शुभ मुहूर्त -पूजा विधि और व्रत कथा।

29 अगस्त यानी आज है अजा एकादशी

हर वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन अजा एकादशी मनाई जाती है। इस बार एकादशी का व्रत 29 अगस्त दिन गुरुवार यानी आज रखा जाएगा. अजा एकादशी व्रत करने वाले हर व्यक्ति को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है. भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को ही अजा एकदाशी  के नाम से जाना जाता है। इस तिथि पर कई साधक निर्जला व्रत भी करते हैं। ऐसा करने से साधक को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है। एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के जीवन की सभी पाप कट जाते हैं और सुखों की प्राप्ति होती है। चलिए जानते हैं कैसे करते हैं? भाद्रपद मास की एकादशी यानी अजा एकादशी की पूजा विधि, मुहूर्त और महिमा।

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हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।  भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ – साथ भगवान ऋषिकेश की पूजा करना चाहिए। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

अजा एकादशी की पूजा विधि एवं व्रत कैसे करना चाहिए ?

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के साथ साफ कपड़े धारण कर लें. इसके बाद मंदिर की अच्छी तरह से सफाई कर लें. फिर देवी-देवताओं को स्नान कराने के बाद साफ कपड़े पहनाएं और मंदिर में दीप प्रज्वलित करें. इसके बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें. भगवान को प्रसाद, नारियल, जल, तुलसी, फल और फूल भी पूजा के दौरान अवश्य अर्पित करें। पूजा के अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती आपको गानी चाहिए। अगले दिन द्वादशी पर पूजा के बाद पारण करें। द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए और उसके बाद ही भोजन ग्रहण आपको करना चाहिए।

आइए जानें एकादशी व्रत पहली बार शुरू कैसे करें?

एकादशी तिथि के दिन सुबह प्रात:काल उठकर गंगा नदी में या घर पर नहाने के पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए. उसके बाद साफ कपड़े धारण करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद घर के मंदिर में जाकर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और श्रीकृष्ण के दामोदर स्वरूप का विधि विधान से पूजन करें.

अजा एकादशी की पूजा के दौरान इन मंत्रों करना चाहिए जाप

ज्योतिषियों की मानें तो, अजा एकादशी के दिन श्रीहरि के कुछ खास मंत्रों का जाप करना चाहिए जिनसे सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. जीवन में धन, वैभव और सुख समृद्धि के लिए ” ऊं नमो भगवते वासुदेवाय ” मंत्र का जाप करना सबसे ज्यादा फलदायी होता है.

कैसे करने चाहिए अजा एकादशी व्रत के नियम यहां जानें.

अजा एकादशी के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की पूजा करें और तुलसी के पौधे की पूजा करें. विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें. कथा सुनें. अजा एकादशी की कथा सुनें. अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करें. अजा एकादशी पर अनाज, दालें, चावल, प्याज और मांसाहारी भोजन खाना सभी के लिए सख्त वर्जित है। यात्रा दशमी से शुरू होती है और पर्यवेक्षक को दोपहर से पहले केवल ‘सात्विक’ भोजन खाना चाहिए। जो भक्त एकादशी के दिन एक समय भोजन करके व्रत रखते हैं, उनके लिए एकादशी के दिन फलियाँ और अनाज खाना वर्जित है।  इस दिन बाल, नाखून, और दाढ़ी नहीं कटवानी चाहिए .

एकादशी व्रत में क्या फलाहार करना चाहिए?।

एकादशी व्रत के फलाहार में फल और दूध का सेवन कर सकते हैं। आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता आदि चीजें एकादशी फलाहार में ग्रहण करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन फलाहार में कुट्टू का आटा और साबूदाना का सेवन भी कर सकते हैं। फलाहार वाली चीजों का पहले विष्णु जी को भोग लगाएं उसमें तुलसी दल जरूर रखें।

अजा एकादशी का शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का समापन 30 अगस्त को देर रात 01 बजकर 37 मिनट पर होगा। साधक 29 अगस्त यानी आज अजा एकादशी का व्रत रखेंगे। वहीं, पारण 30 अगस्त को सुबह 07 बजकर 49 मिनट से लेकर 08 बजकर 40 मिनट के मध्य कर सकते हैं।

अजा एकादशी पर तीन योगों का निर्माण हो रहा है

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सिद्धि योग, दुर्लभ शिववास योग, बव और बालव करण योग का निर्माण हो रहा है।

अजा एकादशी की व्रत कथा

कुंतीपुत्र युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम अजा है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है उसको वैकुंठ की प्राप्ति अवश्य होती है। अब आप इसकी कथा सुनिए।

प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया।

वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा। मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, जिससे मेरा उद्धार हो।

इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋषि आ गए। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दु:खभरी कहानी कह सुनाई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो।

गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए।

स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया।

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